चंद्रयान-२
मिशन प्रकार | चन्द्रमा spacecraft ,ऑर्बिटर, लैंडर तथा रोवर | ||||
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संचालक (ऑपरेटर) | भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन | ||||
मिशन अवधि | ऑर्बिटर: 1 वर्ष लैंडर : 14-15 दिन[1] रोवर: 14-15 दिन[1] | ||||
अंतरिक्ष यान के गुण | |||||
निर्माता | भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन | ||||
लॉन्च वजन | संयुक्त: 3,250 कि॰ग्राम (7,170 पौंड)[2] | ||||
पेलोड वजन | ऑर्बिटर: 1,400 कि॰ग्राम (3,100 पौंड) रोवर: 20 कि॰ग्राम (44 पौंड)[3] | ||||
मिशन का आरंभ | |||||
प्रक्षेपण तिथि | 2019 | ||||
रॉकेट | भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान[4] | ||||
प्रक्षेपण स्थल | सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र | ||||
ठेकेदार | भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन | ||||
चन्द्रमा कक्षीयान | |||||
कक्षा मापदंड | |||||
निकट दूरी बिंदु | 100 कि॰मी॰ (62 मील)[2] | ||||
दूर दूरी बिंदु | 100 कि॰मी॰ (62 मील)[2] | ||||
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चंद्रयान-2 भारत का चंद्रयान -1 के बाद दूसरा चंद्र अन्वेषण अभियान है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) ने विकसित किया है।[
अभियान को जीएसएलवी मार्क 3 प्रक्षेपण यान द्वारा प्रक्षेपण करने की योजना है।
इस अभियान में भारत में निर्मित एक लूनर ऑर्बिटर (चन्द्र यान) तथा एक रोवर एवं एक लैंडर शामिल होंगे। इस सब का विकास इसरो द्वारा किया जायेगा। भारत चंद्रयान-2 को 15 July 2019 में प्रक्षेपण करने की योजना बना रहा है।
इसरो के अनुसार यह अभियान विभिन्न नयी प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल तथा परीक्षण के साथ-साथ नए प्रयोग भी करेगा।
पहिएदार रोवर चन्द्रमा की सतह पर चलेगा तथा वहीं पर विश्लेषण के लिए मिट्टी या चट्टान के नमूनों को एकत्र करेगा। आंकड़ों को चंद्रयान-2 ऑर्बिटर के माध्यम से पृथ्वी पर भेजा जायेगा।
मायलास्वामी अन्नादुराई के नेतृत्व में चंद्रयान-1 अभियान को सफलतापूर्वक अंजाम देने वाली टीम चंद्रयान-2 पर भी काम कर रही है।
डिजाइन
- अंतरिक्ष यान
इस अभियान को श्रीहरिकोटा द्वीप के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान द्वारा भेजे जाने की योजना है; उड़ान के समय इसका वजन लगभग 3,250 किलो होगा।
दिसंबर 2015 को, इस अभियान के लिये 603 करोड़ रुपये की लागत आवंटित की गई।
- ऑर्बिटर
ऑर्बिटर 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर चन्द्रमा की परिक्रमा करेगा.
इस अभियान में ऑर्बिटर को पांच पेलोड के साथ भेजे जाने का निर्णय लिया गया है। तीन पेलोड नए हैं, जबकि दो अन्य चंद्रयान-1 ऑर्बिटर पर भेजे जाने वाले पेलोड के उन्नत संस्करण हैं। उड़ान के समय इसका वजन लगभग 1400 किलो होगा। ऑर्बिटर उच्च रिज़ॉल्यूशन कैमरा (Orbiter High Resolution Camera) लैंडर के ऑर्बिटर से अलग होने पूर्व लैंडिंग साइट के उच्च रिज़ॉल्यूशन तस्वीर देगा।
ऑर्बिटर और उसके जीएसएलवी प्रक्षेपण यान के बीच इंटरफेस को अंतिम रूप दे दिया है।
- लैंडर
चन्द्रमा की सतह से टकराने वाले चंद्रयान-1 के मून इम्पैक्ट प्रोब के विपरीत, लैंडर धीरे-धीरे नीचे उतरेगा।
लैंडर किसी भी वैज्ञानिक गतिविधियों प्रदर्शन नहीं करेंगे। लैंडर तथा रोवर का वजन लगभग 1250 किलो होगा। प्रारंभ में, लैंडर रूस द्वारा भारत के साथ सहयोग से विकसित किए जाने की उम्मीद थी। जब रूस ने 2015 से पहले लैंडर के विकास में अपनी असमर्थता जताई। तो भारतीय अधिकारियों ने स्वतंत्र रूप से लैंडर को विकसित करने का निर्णय लिया। रूस लैंडर को रद्द करने का मतलब था। कि मिशन प्रोफ़ाइल परिवर्तित हो जाएगी। स्वदेशी लैंडर की प्रारंभिक कॉन्फ़िगरेशन का अध्ययन 2013 में अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र(SAC),अहमदाबाद द्वारा पूरा कि गयी।
- लैंडर पेलोड
- सेइसमोमीटर - लैंडिंग साइट के पास भूकंप के अध्ययन के लिए
- थर्मल प्रोब - चंद्रमा की सतह के तापीय गुणों का आकलन करने के लिए
- लॉंगमोर प्रोब - घनत्व और चंद्रमा की सतह प्लाज्मा मापने के लिए
- रेडियो प्रच्छादन प्रयोग - कुल इलेक्ट्रॉन सामग्री को मापने के लिए
- रोवर पेलोड
- लेबोरेट्री फॉर इलेक्ट्रो ऑप्टिक सिस्टम्स (LEOS), बंगलौर से लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (LIBS).
- PRL, अहमदाबाद से अल्फा पार्टिकल इंड्यूस्ड एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोप (APIXS).
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